झारखंड की भावी दिशा


शिबू सोरेन
झारखंड का स्थापना दिवस एवं भगवान बिरसा मुंडा की जय्ाती की तिथि एक ही है. 15 नवंबर की य्ाह तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है. य्ाह भगवान बिरसा मुंडा के साथ-साथ सिद्ध्ाू-कान्हू, चांद-भैरव, तिलका मांझ्ी, वीर बुधू भगत, पांडेय्ा गणपत राय्ा, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी जैसे महापुरुषों के साथ-साथ झ्ाारखंड आंदोलन के शहीदों के बलिदान की भी य्ाद दिलाता है.
भगवान बिरसा मुंडा ने अत्य्ाचार, शोषण, सूदखोरी के खिलाफ संघर्ष किय्ा था एवं शराबखोरी, छुआछूत, भेदभाव से दूर रहने का संदेश दिय्ाा था. उस संदेश को बार-बार य्ााद करने और व्य्ावहार में उतारने की आवश्य्ाकता है.
झ्ाारखंड राज्य्ा अपना आठवां स्थापना दिवस मना रही है. झ्ाारखंड राज्य्ा गठन की लडाई में हमने अपने जीवन के 40 बहुमूल्य्ा साल बिताए हैं. इस आंदोलन को हमने और हमारे साथिय्ाों ने खून-पसीने से सींचा. इसके फलस्वरूप ही इस राज्य्ा का उदय्ा हुआ. अलग राज्य्ा गठन करने का मेरा मकसद य्ाही था कि झ्ाारखंड राज्य्ा का चौतरफा विकास हो. इस राज्य्ा की गरीब जनता को भी विकास का लाभ मिल सके.
राज्य्ा गठन के बाद य्ाहां की सरकार की बागडोर ऐसे लोगों के हाथों चली गय्ाी, जिन्हें झ्ाारखंड आंदोलन से कुछ लेना-देना नहीं था. उनके पार्टी के लोगों ने झ्ाारखंड आंदोलन का विरोध ही किय्ाा था. नतीजन उनके कायर््ाकाल में राज्य्ा के विकास के बदले कुछ लोगों का विकास हुआ. उन लोगों ने झ्ाारखंड के लोगों की भावनाओं का आदर नहीं किय्ाा. य्ाहां के गांव, खेत-खलिहान, जल-जंगल के विकास की चिंता नहीं की, जिसके कारण झ्ाारखंड के लोग अपने को ठगा हुआ महसूस करने लगे. पुरानी सरकारों की अनदेखी के कारण गांव-जवार में जो आक्रोश फैला, उसके कारण ही वे सरकारें बदल गईं. आपलोगों के सहय्ाोग से अब झ्ाारखंड सरकार की बागडोर मुझ्ो मिली है. य्ाह बागडोर झ्ाारखंड आंदोलन के एक सिपाही को मिली है. सरकार में आते ही हमने अपने पदाधिकारिय्ाों को य्ाह निर्देश दिय्ाा कि किसानों एवं गरीबों के हक से जुडी हुई य्ाोजनाएं बनाय्ाी जाय्ों. मात्र्ा ढाई महीने के शासनकाल में हमने राज्य्ा के गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों को 3 रुपय्ो के दर से चावल एवं 2 रुपय्ो के दर से गेहूं उपलब्ध कराने का निर्देश दिय्ाा है. अब गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों को अगले महीने से सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध होने लगेगा. मैं इस बात पर विश्वास रखता हूं कि य्ादि किसान खुशहाल होगा तो राज्य्ा भी खुशहाल होगा. इसके लिए हमने ’समेकित किसान खुशहाली य्ाोजना‘ शुरू की है. इसके तहत प्रत्य्ोक जिले के दो-दो प्रखंडों के किसानों को अपनी जमीन पर एक से अधिक फसल फैदा करने की आवश्य्ाक सुविधाएं उपलब्ध कराय्ाी जाय्ोंगी. साथ ही उन्हें पशुपालन, मुर्गी पालन य्ाा बत्तख पालन के लिए भी सुविधाएं दी जाय्ोंगी.
राज्य्ा में नौ आदिम जनजाति के सदस्य्ा रहते हैं. वे अभी भी विकास की मुख्य्ाधारा से कोसों दूर हैैं. इनमें से कई परिवार आज भी जंगल से कंदमूल इकट्ठा करके अपना पेट भरते हैं. य्ो बहुत ही चिंताजनक स्थिति है. बचपन में, और आंदोलन के दिनों में हमने अपना काफी समय्ा जंगलों में बिताय्ाा है. मैंने भी गरीबी को काफी नजदीक से देखा है. इसलिए हमने य्ाह फैसला लिय्ाा है कि ऐसे सभी गरीब परिवारों को निःशुल्क अनाज उपलब्ध कराय्ाा जाय्ो. अब इस य्ाोजना का नाम ’मुख्य्ामंत्र्ाी खाद्य सुरक्षा य्ाोजना‘ होगा. इस य्ाोजना के तहत झ्ाारखंड राज्य्ा के सभी आदिम जनजाति के परिवारों को निःशुल्क 35 किलो प्रतिमाह प्रति परिवार अनाज उपलब्ध कराय्ाा जाएगा.
हमारी सरकार का य्ाह फैसला है कि आदिम जनजाति वर्ग के बीए पास बच्चों को सरकारी नौकरी में सीधी निय्ाुक्ति दी जाय्ो. अब राज्य्ा में आदिम जनजाति वर्ग का कोई भी पढा-लिखा लडका य्ाा लडकी बेरोजगार नहीं रहेगा. हमारी सरकार ऐसे बच्चों को सीधे निय्ाुक्ति देगी. रांची जिले के पांच बीए पास आदिम जनजाति बच्चों को निय्ाुक्ति पत्र्ा देने जा रहे हैं. इस महीने के अंत तक 67 आदिम जनजाति के बच्चों को नौकरी दी जाय्ोगी.
गरीबों की सबसे बडी समस्य्ाा भोजना और आवास की होती है. हमने अनाज देने के साथ-साथ गरीबों को आवास भी उपलब्ध कराने का निर्णय्ा लिय्ाा है. हमारी सरकार ने सिद्ध्ाू-कान्हू आवास य्ाोजना श्ुारू की है. इस य्ाोजना के तहत राज्य्ा में गरीबी रेख से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों को निःशुल्क आवास उपलब्ध कराय्ाा जाय्ोगा. इंदिरा आवास य्ाोजना की तर्ज पर ही आवास बनाने हेतु प्रति इकाई 35 हजार रुपय्ो की आर्थिक सहाय्ाता राज्य्ा सरकार अपनी निधि से देगी.
भोजन, आवास के साथ-साथ पढाई की जरूरत से कोई इंकार नहीं कर सकता है. सरकारी विद्यालय्ाों में पढने वाली अनुसूचित जाति एवं जनजाति के 6-1ñ वर्ग की छात्र्ााओं को मुफ्त में पोशाक दिय्ाा जाय्ोगा. प्रत्य्ोक 1ñ हजार की आबादी पर एक माध्य्ामिक विद्यालय्ा की स्थापना की जाय्ोगी. इसके साथ ही प्राथमिक विद्यालय्ाों में सहाय्ाक शिक्षकों तथा उर्दू के शिक्षकों की भी निय्ाुक्ति होगी. छात्र्ााओं को स्नातकोत्तर तक शिक्षण में परीक्षा शुल्क में छूट दी जाय्ोगी. हमारी सरकार झ्ाारखंड के लोगों को स्वास्थ्य्ा सेवाएं मुहैय्ाा कराने के लिए तत्पर हैं. सदर अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य्ा केंद्रों के भवन का निर्माण कायर््ा तेजी से चल रहा है. अस्पतालों के शय्य्ाा की संख्य्ाा बढाई जा रही है. सरकारी और निजी प्रय्ाासों से नय्ो मेडिकल कालेज, आय्ाुर्वेदिक कालेज और डेंटल कालेज खोले जा रहे हैं. राज्य्ा के गठन के समय्ा सिंचित खेती य्ाोग्य्ा भूमि मात्र्ा नौ प्रतिशत थी, उसे बढाकर लगभग साढे तेईस प्रतिशत किय्ाा गय्ाा है. हमारी सरकार का लक्ष्य्ा है कि वृहद, मध्य्ाम और लघु सिंचाई य्ाोजनाओं से सिंचित भूमि का प्रतिशत तेजी से बढाय्ाा जाय्ो. आज भी राज्य्ा की 8ñ प्रतिशत जनता पीने के पानी के लिए कुआं और चापानल पर निर्भर है. हमारी कोशिश रहेगी कि ज्य्ाादा से ज्य्ाादा गांव के पाईप से जलापूर्ति करने वाली य्ाोजनाओं को पूरा किय्ाा जाय्ो.
राज्य्ा के य्ाुवाओं के विकास के लिए तकनीकी शिक्षा की बहुत अधिक जरूरत है. सरकारी और निजी प्रय्ाासों से नय्ो इंजीनिय्ारिंग कालेज खोले गय्ो हैं. वहीं सरकार की कोशिश है कि लगभग हर जिले में नए पालिटेक्निक एवं प्रत्य्ोक अनुमंडल में नए आईटीआई खोले जाय्ो. महिलाओं के लिए भी विशेष तौर पर नए पालिटेक्निक एवं आईटीआई खोले जा रहे हैं. रांची एवं देवघर में तारामण्डल का निर्माण शीघ्र प्रारंभ किय्ाा जा रहा है.
दुमका को झ्ाारखंड की उप राजधानी का दर्जा तो दिय्ाा गय्ाा, लेकिन उसके विकास पर आज तक विशेष ध्य्ाान नहीं दिय्ाा गय्ाा, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा दुमका के साथ-साथ पूरे संथाल परगना के विकास पर हम विशेष ध्य्ाान देंगे. इसी सिलसिले में हमने हाल ही में दुमका में सोना सोबरन पाय्ालट प्रशिक्षण केंद्र का उद्घाटन किय्ाा है. इस केंद्र में आदिम जनजाति वर्ग के य्ाुवाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण दिय्ाा जाय्ोगा.
हमने राज्य्ा सरकार के सभी विभागों के खाली पदों के संबंध में रिपोर्ट करने का निर्देश अधिकारिय्ाों को दिय्ाा है. शीघ्र ही लगभग एक लाख खाली पदों पर राज्य्ा के नौजवान लडके-लडकिय्ाों की बहाली की जाय्ोगी. हमने सिपाही की निय्ाुक्तिय्ाों में स्थानीय्ा लोगों को प्राथमिकता देने का निर्देश दिय्ाा है, ताकि वे ग्रामीणों की बोली-भाषा समझ्ा सकें और उनकी समस्य्ााओं का निदान कर सकें. झ्ाारखंड के लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति अभिमान जाग सके, उसके लिए संस्कृति कर्मिय्ाों को सम्मानित करने की हमारी य्ाोजना है. साथ ही ग्रामीणों के बीच नगाडा, मांदर, ढाक और ढोल आदि भी वितरित किय्ो जाय्ोंगे. उसी प्रकार खेल-कूद में अपनी प्रतिभा दिखाने वाले और राष्ट्रीय्ा एवं अंतर्राष्ट्रीय्ा स्तर पर झ्ाारखंड का नाम रौशन करने वाले खिलाडिय्ाों को भी सम्मानित करने और नौकरी देने की हमारी य्ाोजना है.
हमारा विश्वास है कि झ्ाारखंड की खुशहाली की कुंजी गांवों के विकास में छिपी है. गांवों की खेती-किसानी, पशुपालन, वानिकी, लघु-कुटीर उद्योग क ेविकास में ही अपने राज्य्ा का विकास हो सकेगा. राज्य्ा के य्ाुवाओं को हर जिला, हर अनुमंडल में तकनीकी शिक्षा मिल सके, इसकी हमारी कोशिश है, तभी वे आने वाले उद्योगों का लाभ उठा सकेंगे. गांवों के लोगों की समस्य्ााओं का समाधान उनके गांव के नजदीक मिल सके, इसके लिए हम छोटे-छाटे प्रखंडों का निर्माण कर रहे हैं. अभी 35 नय्ो प्रखंडों का सृजन किय्ाा गय्ाा है. नय्ो अनुमंडल भी बनाय्ो जा रहे हैं. हमारी य्ो कोशिश है कि राज्य्ा की प्रगति को खूब तेज गति दी जाय्ो. इस कायर््ा में हमें आप सबका सहय्ाोग चाहिए, तभी य्ाह भगवान बिरसा मुंडा, सिद्ध्ाू-कान्हू एवं अन्य्ा महापुरुषों और शहीदों के सपनों को साकार कर सकेंगे.

गुरुजी के सामने है बडी चुनौती

उमापद महतो
रांची ः झ्ाारखंड कल आठवें वर्ष का हो जाय्ोगा. इन आठ वर्षों में राज्य्ा में ’लूट संस्कृति‘ गहरी जडें जमा चुकी है. बदहाली दूर होने के जिस सपने के साथ झ्ाारखंड बना, वह सपना कहीं दूर बादलों के ओट में छुप गय्ाा. आज जो व्य्ाक्ति राज्य्ा के मुखिय्ाा के पद पर बैठा है, उसी शिबू सोरेन ने झ्ाारखंड अलग राज्य्ा के लिए तीस वर्षों तक सतत् संघर्ष किय्ाा. श्री सोरेन को झ्ाारखंडिय्ाों ने ’गुरुजी‘ बना दिय्ाा और आज झ्ाारखंडिय्ाों की निगाहें गुरुजी पर हैं.
आठ वर्षों में राज्य्ा की दशा सुधरने की बात तो दूर, आज तक राज्य्ा को दिशा भी नहीं मिली. सरकारी महकमें में जो जहां बैठा है ’लूट तंत्र्ा‘ का हिस्सेदार बना बैठा है. परिवहन व आबकारी विभाग में ’नोट गिनने की मशीन‘ लग गय्ाी है. मोबाइल दारोगा व शराब माफिय्ाा ’सिंडीकेट‘ सत्ता बदलने की धमकी देने की कूबत रखता है. सत्ता के दलाल ’रात को दिन‘ में बदलने की हिमाकत कर सकते हैं.
मंत्र्ाी, छुट भैय्ो, बिचौलिय्ाा, इंजीनिय्ार, ठेकेदार, अफसर, अर्दली सभी मालामाल हैं. बस बदहाल है, तो केवल आम जनता. जिन बिचौलिय्ो, छुटभैय्ाों की कूबत एक कप चाय्ा पीने की नहीं थी, वही बिचौलिय्ो, छूटभैय्ो आज लक्जरी गाडिय्ाों में फर्राटे भरने लगे हैं और आलीशान फ्लैटों में रहते हैं. चाल, चलन, चरित्र्ा सब कुछ बदल गय्ाा है. राज्य्ा में लोकतंत्र्ा से ’लोक‘ गाय्ाब हो गय्ाा है. संविधान, कानून, नैतिकता अतीत की पोथी बनकर रह गय्ाा है.
सरकारी निवाला खाने से बच्चों की मौत होती है. पुल पूरी तरह बनने के पहले गिर जाते हैं. सडक पूरी तरह बनने के पहले उखड जाती है. सडक पहले बनती है, अलकतरा बाद मंे खरीदा जाता है. लेकिन कहीं किसी को खौफ नहीं. कागजी आंकडों में नरेगा य्ाोजना, गर्भवती जननी सुरक्षा य्ाोजना चल रही है. पैसे में नौकरिय्ाां बिक रही हैं. मेरिटोरिय्ास हताश घर बैठे हैं.
लिहाजा मुख्य्ामंत्र्ाी श्री सोरेन ने वर्षों पुराने अपने वादे के मुताबिक बीपीएल को तीन रुपय्ो चावल मुहैय्ाा कराने का फैसला लिय्ाा है और कल स्थापना दिवस के मौके पर राज्य्ा में बडे पैमाने पर बेरोजगारों को निय्ाोजित करने की घोषणा करने वाले हैं. लेकिन उन सवालों का क्य्ाा होगा, जो राज्य्ा में मौजूं है? य्ाह गुरुजी को बताना भी होगा और उसे रोककर राज्य्ा को नई दिशा देनी होगी. राज्य्ा की दशा सुधारने की बडी चुनौती गुरुजी के सामने है.

टाटा झारखंड की खाता है और आंख भी दिखाता है, नहीं चलेगा - शिबु

जमशेदपुर: राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिबु सोरेन टाटा कंपनी पर खूब बरसे। यहां एक जनसभा के दौरान उन्‍होंने कहा कि टाटा कंपनी झारखंड के संसाधनों के बूते ही फल-फूल रही है, लेकिन यहां के आदिवासियों से वह घृणा करती है। यह सब अब नहीं चलेगा।

सिंहभूम के जगन्‍नाथपुर प्रमंडल और दो नये प्रखंड हाटगम्‍हहिरया और बोडाम के उदघाटन के बाद यहां के सोरेन गोपाल मैदान में सोहराय मिलन (आदिवासी पर्व) सभा को संबोधित करते हुए शिबु ने कहा कि टाटा कंपनी ने आदिवासियों की जमीन ले ली, लेकिन पीने का पानी तक उपलब्‍ध नहीं करा रही है। वह झारखंड के पानी, बिजली, लोहा से अपने घर भर कर झारखंडियों को ही आंखें दिखाती है। शिबु ने एमओयू साइन करने वाले उद्यमी घरानों को भी नहीं बख्‍शा। उन्‍होंने कहा कि उनकी सरकार यहां मौजूद और आनेवाले उद्यमी घरानों के इस रवैये पर चौकसी रखेगी। यह सब अब नहीं चलेगा।

टाटा पर सरकार के हमले की सच्चाई

झारखण्ड में उद्योगों पर लगातार हमले हो रहे हैं लेकिन इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब १०० वर्ष पुरानी टाटा स्टील जिससे भारत के प्रधानमंत्री मानमोहन सिंह औद्योगिक विकास का नमूना मानते है उसपर राज्य के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने यह कहते हुए सीधे तौर पर हमला बोल दिया है कि टाटा स्टील को झारखण्ड से नफरत है, कम्पनी का मकसद सिर्फ पैसा कमाना है तथा उससे यहां के गरीबों की परवाह नहीं है। यहां एक बात तो स्पष्‍ट है कि कुछ दिनों पहले तक टाटा का गुण गाने वाले शिबू सोरेन अपनी खुनस निकाल रहे है क्योंकि वे नैनो परियोजना को झारखण्ड में लाना चाहते थे ताकि मध्यम वर्ग उनसे खुश रहे जिससे अगले चुनाव में उनको फायदा मिल सकता है। इसके बावजूद जिस मानवता की बात उन्होंने उठायी है वह निश्चित तौर पर चिंतंनीय है। दूसरी बात यह है कि राज्य में औद्योगिकरण का इतिहास टाटा स्टील से ही प्रारंभ होती है उसके बावजूद क्यों टाटा स्टील को टोंटोपोसी में ग्रीनफिल्ड परियोजना के लिए २४,५०० एकड जमीन तथा सिंहभूम में परियोजना विस्तार हेतु ६००० एकड जमीन नहीं मिल पा रही हैं।

यह तथ्य है कि टाटा स्टील का गरीबी उन्मूलन में खास भूमिका नहीं हैं। १०० वर्ष के बाद भी टाटा की धरती जमशेदपुर में गरीबी खत्म होने के बजाये लगातार बढ रही हैं। शहर में रह रहे आदिवासी, दलित एवं गरीबों को की स्थिति बहुत दयनीय है। ये लोग विस्थापन की मार झेलने के बाद झुग्गीवासी बन चुके हैं। रिक्शा चलाना, कचडा चुनना और मजदूरी करना ही उनके जीविका का प्रमुख साधन बन चुका है। टाटा ने इन लोगों से वादा किया था कि नये लीज एग्रीमेंट में अनुसूचित क्षेत्र की जमीन जहाँ ८५ (सरकारी ऑंकडों के अनुसार) तथा वर्तमान में ११५ झुग्गी बस्ती है उसे लीज से बाहर कर दिया जायेगा। २० अगस्त २००५ को टाटा का नया लीज एग्रीमेंट बना जो अगले ३० वर्षों तक कायम रहेगा। लीज के बाद अखबरों में खबर छपी कि अनुसूचित क्षेत्रों की भूमि को लीज से बाहर रखा गया है। झुग्गीवासी खुशियां मनाने लगे, मिठाईयां बांटी गई तथा लोग नाचने-गाने लगे। लेकिन कुछ ही दिन बाद जब उन्हें अपना मकान खाली करने की सूचना दी गई तो ऐसा लगा मानो उनके ऊपर आसमान गिर पडा है।

उन्होंने 'संयुक्त बस्ती समिति' नामक संगठन के माध्यम से 'सूचना का अधिकार' के तहत जमशेदपुर के विकास आयुक्त से लीज के संबंध में सूचना मांगी। प्राप्त सूचना के अनुसार टाटा को ४३९१.८६.२२ हेक्टेयर भूमि दी गई है, जिसमें अनुसूचित क्षेत्र की भूमि भी शामिल है। टाटा को यह भूमि २ रूपये, २८ रूपये, २०० रूपये एवं ४०० रूपये प्रति एकड की दर से दी गई है, जिस पर टाटा अगले ३० वर्शों तक राज करेगा। वरिश्ठ पत्रकार फैसाल अनुराग के अनुसार छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम १९०४ में ही बन कर तैयार था लेकिन टाटा को जमीन देना था इसलिए इस अधिनियम को उस समय लागू नहीं किया गया। १९०७ में टाटा कम्पनी की स्थापना हुई, जिसमें आदिवासियों की जमीन भी ली गई। उसके बाद १९०८ में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम को लागू किया गया। वे कहते है, ''टाटा कम्पनी एवं सरकार दोनों ने मिलकर आदिवासियों को ठगा है''।

टाटा प्रमुख रतन टाटा कहते हैं कि उनकी कम्पनी किसी के लाश पर प्रगति करने के लिए नहीं बनी है। लेकिन उनका अमानवीय चेहरा २ जनवरी २००६ को पहली बार उडीसा के कलिंगानगर में सामने आया था, जहाँ १४ आदिवासी पुलिस गोली के शिकार हुए जब वे अपनी जमीन, जंगल और जीविका के संसाधनों की रक्षा हेतु टाटा समूह एवं सरकार से लड रहे थे। इसी कडी में विस्थापन विरोधी आदिवासी कार्यकर्ता अमीन बानारा को १ मई २००८ को गोली मार दी थी। हस्यास्पद बात यह है कि टाटा अभी भी इस परियोजना को लागू करने की फिराक में है।

दूसरी ओर सरकार टाटा को टैक्स में प्रतिवर्ष भारी छूट देती है। टाटा द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर झारखण्ड सरकार ने २००३ में टाटा को ६० करोड रूपये सेल टैक्स भरने को कहा था लेकिन टाटा टैक्स भरने के बजाये झारखण्ड उच्च न्यायालय में सरकार के खिलाफ मुदकमा दायर कर दिया। जब कोर्ट ने आयकर आयुक्त को इस संबंध में निर्णय लेने का निर्देश दिया तो टाटा अपना पांव खिसकते देख पुनः सर्वोच्च न्यायालय का रूख किया। अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने टाटा को टैक्स में ६० करोड रूपये की छूट दे दी। वर्तमान में टाटा पानी का टैक्स भी नहीं दे रही है। टाटा के इस रवैया से स्पश्ट है कि टाटा को झारखण्ड के विकास से मतलब नहीं है उसे सिर्फ झाखण्ड के संसाधनों को बेचकर मुनाफा कमाने से मतलब है।

टाटा स्टील स्वयं को झारखंडियों खासकर विस्थपितों की हितैषी बताती है। टाटा का दावा है कि वह अपने वार्शिक आय का ६६ प्रतिशत राशि सामाजिक सरोकार कार्यक्रम के तहत प्रभावित क्षेत्रों के विकास में खर्च करती है। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके कार्यक्रम का सारा खर्च उनके कर्मचारियों को मिलता है और जिनको मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिलता है। टाटा यह इसलिए करती है ताकि उनके कार्मचारी हमेशा साथ में खडा रहे। आदिवासी एवं मूलवासी जिन्होंने टाटा के कारण अपनी जमीन, जंगल, जीविका के संसाधन, संस्कृति, पहचान खो दी है, टाटा के कल्याणकारी योजनाओं का कभी भी स्वाद नहीं चखा है। ऐसी स्थिति में टाटा स्टील को मानवता पक्ष पर पुर्नविचार करना चाहिए।